Saturday, 22 June 2013

sambhog se smadhdi ki aur part 30


संभोग से समाधि की और—30

प्रेम ओर विवाह-- 
     
      अगर मनुष्‍य जाति को परमात्‍मा के निकट लाना है, तो पहला काम परमात्‍मा की बात मत करिये। मनुष्‍य जाति को प्रेम के निकट ले आइये। जीवन जोखिम भरा है। न मालूम कितने खतरे हो सकते है। जीवन की बनी-बनाई व्‍यवस्‍था में न मालूम कितने परिवर्तन करने पड़ सकते है। लेकिन न पर करेंगे परिवर्तन तो यह समाज अपने ही हाथ मौत के किनारे पहुंच गया है। इसलिए मर जाएगा। यह बच नहीं सकता। प्रेम से रिक्‍त लोग ही युद्धों को पैदा करते है। प्रेम से रिक्‍त लोग ही अपराधी बनते है। प्रेम से रिक्‍त ही अपराध, क्रिमीनलिटी की जड़ है और सारी दुनियां में अपराधी फैलते चले जाते है।
      जैसे मैंने आपसे कहा कि अगर किसी दिन जन्‍म विज्ञान विकसित होगा, तो हम शायद पता लगा पाये कि कृष्‍ण का जन्‍म किन स्‍थितियों में हुआ। किसी समस्‍वरता हार्मनी में कृष्‍ण के मां-बाप ने किस प्रेम के क्षण में गर्भ स्‍थापन, कन्‍सैप्‍शन किया इस बच्‍चे का। किस प्रेम के क्षण में यह बच्‍चा अवतरित हुआ। तो शायद हमें दूसरी तरफ यह भी पता चल जाए कि हिटलर किस अप्रेम के क्षण में पैदा हुआ। मुसोलनी किस क्षण पैदा हुआ होगा। तैमुर लंग,चंगेज खां किस अवसर पर पैदा हुए थे।
      हो सकता है यह पता चले कि चंगेज खां संघर्ष घृणा और क्रोध से भरे मां-बाप से पैदा हुआ हो। जिंदगी भी फिर वह क्रोध से भरा हुआ है। वह जो क्रोध का मौलिक वेग,ओरिजिनल मोमैंटम है हव उसको जिंदगी भर दौड़ाये चला जा रहा है। चंगेज खां जिस गांव में गया, लाखों लोगों को कटवाँ देता था।
      तैमुर जिस राजधानी में जाता, दस-दस हजार बच्‍चों की गर्दनें कटवाँ देता। भाले मैं छिदवा देता। जुलूस निकालता तो दस हजार बच्‍चों की गर्दनें लटकी हुई है। भालों के ऊपर। पीछे तैमुर जा रहा है। लोग पूछते है यह तुम क्‍या कर रहे हो। तो वह कहता कि ताकि लोग याद रखें की कभी तैमुर लंग इस नगरी में आया था। इस पागल को याद रखने की कोई और बात समझ में नहीं पड़ती थी।
      हिटलर ने जर्मनी में साठ लाख यहूदियों की हत्‍या की। पाँच सौ यहूदी रोज मारता रहा। स्‍टैलिन ने रूस में साठ लाख लोगों की हत्‍या की।
      जरूर इनके जन्‍म के साथ कोई गड़बड़ हो गयी। जरूर ये जन्‍म के साथ पागल पैदा हुए। उन्‍माद इनके जन्‍म के साथ इनके खून में आया और फिरा वे इसको फैलाते चले गये।
      पागलों में बड़ी ताकत होती है। पागल कब्‍जा कर लेते है और दौड़ कर हावी हो जाते है—धन पर,पद पर, यश पर, फिर वे सारी दूनिया को विकृत करते है। पागल ताकतवर होते है।
      यह जो पागलों ने दुनिया बनायी है। यह दुनिया तीसरे महायुद्ध के करीब आ गयी है। सारी दुनिया मरेगी। पहले महायुद्ध में साढ़े तीन करोड लोगों की हत्‍या की गई। दूसरे महायुद्घ में साढ़े सात करोड़ लोगों की हत्या की गई। तब तीसरे में कितनी की जायेगी?
      मैंने सूना है जब आइन्सटीन भगवान के घर पहुंच गया तो भगवान ने उससे पूछा कि मैं बहुत घबराया हुआ हूं। तीसरे महायुद्ध के संबंध में कुछ बताओगे? क्‍या होगा? उसने कहा, तीसरे के बाबत कहना मुश्‍किल है, चौथे के संबंध में कुछ जरूर बता सकता हूं। भगवान ने कहा, तीसरे के बाबत नहीं बता सकते तो चौथे के बाबत कैसे बताओगे? आइन्‍सटीन ने कहा एक बात बता सकता हूं चौथे के बाबत कि चौथा महायुद्ध कभी नहीं होगा। क्‍योंकि तीसरे में सब समाप्‍त हो जायेगा। चौथे के होने की कोई संभावना नहीं है। और तीसरे के बाबत कुछ भी कहना मुश्‍किल है कि साढ़े तीर अरब पागल आदमी क्‍या करेंगे? तीसरे महायुद्ध में कुछ नहीं कहा जा सकता कि क्‍या स्‍थिति होगी।
      प्रेम से रहित मनुष्‍य मात्र एक दुर्घटना है—मैं अंत में यह बात निवेदन करना चाहता हूं।
      मेरी बातें बड़ी अजीब लगी होंगी; क्‍योंकि ऋषि मुनि इस तरह की बातें करते ही नहीं। मेरी बात बहुत अजीब लगी होगी। आपने सोचा होगा कि मैं भजन-कीर्तन का कोई नुस्‍खा बताऊंगा। आपने सोचा होगा कि मैं कोई माला फेरने की तरकीब बतालाऊंगा। आपने सोचा होगा कि मैं कोई आपको ताबीज दे दूँगा। जिसको बांधकर आप परमात्‍मा से मिल जायें। ऐसी कोई बात में आपको नहीं बता सकता हूं। ऐसे बताने वाले सब बेईमान है, धोखेबाज है। समाज को उन्‍होंने बहुत बर्बाद किया है।
      समाज की जिंदगी को समझने के लिए मनुष्‍य के पूरे विज्ञान को समझना जरूरी है। परिवार को दंपति को,समाज को—उसकी पूरी व्‍यवस्‍था को समझना जरूरी है। कि कहां गड़बड़ हुई है। अगर सारी दुनिया यह तय कर ले कि हम पृथ्‍वी में एक प्रेम का घर बनायेगे, झूठे विवाह का नहीं। हां, प्रेम से विवाह निकले तो यह सच्‍चा विवाह होगा। हम सारी दुनिया को प्रेम का एक मंदिर बनायेगे। जितनी कठिनाइयां होंगी। मुश्‍किलें होंगी, अव्‍यवस्‍था होगी। उसको संभालने का हम कोई उपाय खोजेंगे। उस पर विचार करेंगे। लेकिन दुनिया से हम यह अप्रेम का जो जाल है, इसको तोड़ देंगे। और प्रेम की एक दुनिया बनायेगे। तो शायद पूरी मनुष्‍यजाति बच सकती है। और स्‍वस्‍थ हो सकती है।
      जोर देकर मैं आपके यह कहना चाहता हूं कि अगर सारे जगत में प्रेम के केंद्र पर परिवार बन जाये तो अति मानव सुपरमैन की कल्‍पना, जो हजारों साल से हो रही है। आदमी को महा मानव बनाने की—यह जो नीत्से कल्‍पना करता है, अरविंद कल्‍पना करते है—यह कल्‍पना पूरी हो सकती है, लेकिन न तो अरविंद को प्रार्थनाओं से और न नीत्से के द्वारा पैदा किये गये सिद्धांत से वह सपना पूरा हो सकता है।
      अगर पृथ्‍वी पर हम प्रेम की प्रतिष्‍ठा को वापस लौटा लाये, अगर प्रेम जीवन में वापस लौट आये सम्‍मानित हो जाए; अगर प्रेम एक आध्‍यात्‍मिक मूल्‍य ले-ले, तो नये मानव का निर्माण हो सकता है। नयी संतति का नयी पीढ़ियों को नये आदमी का। और वह आदमी वह बच्‍चा वह भ्रूण जिसका पहला अणु प्रेम से जन्‍मेंगा, विश्‍वास किया जा सकता है आश्‍वासन दिया जा सकता है कि उसकी अंतिम सांस परमात्‍मा में निकलेगी।
      प्रेम है प्रारंभ। परमात्‍मा है अंत। वह अंतिम सीढी है।
      जो प्रेम को ही नहीं पाता है, वह परमात्‍मा को पा ही नहीं सकता, यह असंभावना है।
      लेकिन जो प्रेम में दीक्षित हो जाता है और प्रेम में विकसित हो जाता है। और प्रेम की सांसों में चलता है और प्रेम के फूल जिसकी सांस बन जाते है।  और प्रेम जिसका अणु-अणु बन जाता है और जो प्रेम में बढ़ता जाता है। फिर एक दिन वह पाता है कि प्रेम की जि गंगा में वह चला था, वह गंगा अब किनारे छोड़ रही है। और सागर बन रही है। एक दिन वह पाता है कि गंगा के किनारे मिटते जाते है। और अनंत सागर आ गया सामने। छोटी-सी गंगा की धारा था गंगोत्री में, छोटी सी प्रेम की धारा होती है शुरू में फिर वह बढ़ती है, फिर वह बड़ी होती है। फिर वह पहाड़ों और मैदानों को पार करती है और एक वक्‍त आता है कि किनारे छूटने लगते है।
      जिस दिन प्रेम के किनारे छूट जाते है, उसी दिन प्रेम परमात्‍मा बन जाता है। जब तक प्रेम के किनारे होते है। तब तक वह परमात्‍मा नहीं होता है। गंगा नदी होती है। जब तक कि वह इस जमीन के किनारे से बंधी होती है। फिर किनारे छूटते है और  वह सागर में मिल जाते है। फिर वह परमात्‍मा से मिल जाती है।
      प्रेम की सरिता और परमात्‍मा का सागर है। लेकिन हम प्रेम की सरिता ही नहीं है, हम प्रेम की नदिया ही नहीं है। और हम बैठे है हाथ जोड़े और प्रार्थनाएं कर रहे है। कि हमको भगवान चाहिए। जो सरिता नहीं है, वह सागर को कैसे पायेगी?
      सारी मनुष्‍य जाती के लिए पूरा आंदोलन चाहिए। पूरी मनुष्‍य जाति के आमूल परिवर्तन की जरूरत है। पूरा परिवार बदलने की जरूरत है। बहुत कुरूप है हमारा परिवार। वह बहुत सुंदर हो सकता है। लेकिन केवल प्रेम के केंद्र पर ही पूरा समाज को बदलने की जरूरत है। और तब एक धार्मिक मनुष्‍यता पैदा हो सकती है।
      प्रेम प्रथम, परमात्‍मा अंतिम।
      और क्‍यों यह प्रेम परमात्‍मा पर पहुंच जाता है?
      क्‍योंकि प्रेम है बीज और परमात्‍मा है वृक्ष। प्रेम का बीज ही फिर फूटता है और वृक्ष बन जाता है।
      सारी दुनिया की स्‍त्रियों से मेरा कहने का यह मन होता है और खासकर स्‍त्रियों से, क्‍योंकि पुरूष के लिए प्रेम अन्‍य बहुत सी जीवन की दिशाओं में एक दिशा है। स्‍त्री के लिए प्रेम अकेली दिशा है। पुरूष के लिए प्रेम और बहुत से जीवन के आयामों में एक आयाम है। उसके और भी आयाम है व्‍यक्‍तित्‍व के; लेकिन स्‍त्री का एक ही आयाम है एक ही दिशा है—वह है प्रेम। स्‍त्री पूरी प्रेम भी है और दूसरी चीज भी है।
      अगर स्‍त्री का प्रेम विकसित हो तो वह समझे,प्रेम की किमिया; प्रेम का रसायन। और बच्‍चों को दीक्षा दे प्रेम की और प्रेम के आकाश में उठने की शिक्षा दे; उनको पंखों को मजबूत करे। लेकिन अभी तो हम काट देते है पंख कि विवाह की जमीन पर सरको। प्रेम के आकाश में मत उड़ना। जब की होना यह चाहिए कि हम प्रेम की जोखिम सिखाए। लेकिन जो जोखिम नहीं उठाते। वे जमीन पर रेंगने वाले किले हो जाते है। जो  जोखिम उठाते है, वे दूर अनंत आकाश में उड़ने  वाले पक्षी सिद्ध होत है।
      आदमी रेंगता हुआ कीड़ा हो गया है। क्‍योंकि हम सिखा रहे है; कोई जोखिम, रिसक न उठाना, कोई खतरा डेंजर मत उठाना। अपने घर का दरवाजा बंद करों और जमीन पर सरको। आकाश में मत उड़ना जब कि होना यह चाहिए कि हम प्रेम की जोखिम सिखाये, प्रेम का खतरा सिखाये। प्रेम का अभय सिखाये और प्रेम के आकाश में उड़ने के लिए उनके पंखों को मजबूर करें। और चारों  तरफ जहां भी प्रेम पर हमला होता हो उसके खिलाफ खड़े हो जायें। प्रेम को मजबूत करें ताकत दें।
      प्रेम के जितने दुश्‍मन खड़े है दुनियां में उनमें नीति शास्‍त्री भी है। क्‍योंकि प्रेम के विरोध में जो हो, वह क्‍या नीति शास्‍त्री होगा? साधु-संन्‍यासी खड़े है प्रेम के विरोध में। क्‍योंकि वे कहते है कि यह सब पाप है। यह सब बंधन है। इसको छोड़ो और परमात्‍मा की तरफ चलो।
      जो आदमी कहता है कि प्रेम को छोड़कर परमात्‍मा की तरफ चलो। वह परमात्‍मा का शत्रु है; क्‍योंकि प्रेम के अतिरिक्‍त परमात्‍मा की तरफ जाने का कोई रास्‍ता ही नहीं है।
      बड़े बूढ़े भी खड़े है प्रेम के विपरीत, क्‍योंकि उनका अनुभव कहता है कि प्रेम खतरा है। लेकिन अनुभवी लोगों से जरा सावधान रहना। क्‍योंकि जिंदगी में कभी कोई नया रास्‍ता वे नहीं बनने देते। वे कहते है कि पुराने रास्‍ते का हमें अनुभव है, हम पुराने रास्‍ते पर चले है, उसी पर सबको चलना चाहिए।
      लेकिन जिंदगी को रोज नया रास्‍ता चाहिए। जिंदगी रेल की पटरियों पर दौड़ती हुई रेलगाड़ी नहीं है कि बनी पटरियों पर दौड़ती रहे। यदि दौड़ती तो एक मशीन हो जायेगी। जिंदगी तो एक सरिता है, जो रोज एक नया रास्‍ता बना लेती है। मैदानों में जंगलों में अनूठे रास्‍ते से निकलती है। अंजान जगत में प्रवेश करती है और सागर तक पहुंच जाती है।
      नारियों के सामने आज एक ही काम है। वह काम यह नहीं है कि अनाथ बच्‍चों को पढ़ा रही है बैठकर। तुम्‍हारे बच्‍चे भी तो सब अनाथ है। नाम के लिए वे तुम्‍हारे बच्‍चे है। न उनकी मां है, न उनका बाप। समाज सेवक स्‍त्रीयां सोचती है। कि अनाथ बच्‍चों का अनाथालय खोल दिया। बहुत बड़ा काम कर दिया। उनको पता नहीं कि तुम्‍हारे अनाथ ऑरफंस है, कोई नहीं उनका—न तुम हो, न तुम्‍हारे पति है। न उनकी मां है और न उनका बाप है, क्‍योंकि वह प्रेम ही नहीं है,जो उनको सनाथ बना दे।
      सोचते है हम कि आदिवासी बच्‍चों को जाकर शिक्षा दें। तुम आदिवासी बच्‍चों को जाकर शिक्षा दो और तुम्‍हारे बच्‍चे धीरे-धीरे आदिवासी हुए चले जा रहे है। ये जो बीटल है, बीट निक है; फलां है, ढिकां है; ये फिर से आदमी के आदिवासी होने की शक्‍लें है। तुम सोचते हो, स्‍त्रियां सोचती है कि जायें और सेवा करें।
      जिस समाज में प्रेम नहीं है, उस समाज में सेवा कैसे हो सकती है?
      सेवा तो प्रेम की सुगंध है।
      मैं तो एक ही बात आज कहना चाहूंगा। आज तो सिर्फ एक धक्‍का आपको दे  देना चाहूंगा। ताकि आपके भीतर चिंतन शुरू हो जाए। हो सकता है मेरी बातें आपको बुरी लगें तो बहुत अच्‍छा है। हो सकता है मेरी बातों से आपको चोट लगे। तिलमिलाहट पैदा हो जाए। उतना ही अच्‍छा है क्‍योंकि उससे कुछ सोच-विचार पैदा होगा।
      हो सकता है मेरी सब बातें गलत हों, इसलिए मेरी बात मान लेने की कोई जरूरत नहीं है। लेकिन मैंने जो कहा है, उस पर आप सोचना। मैं फिर दोहरा देता हूं दो चार सूत्रों को और कहकर अपनी बात पूरी किये देता हूं।
      आज तक का मनुष्‍य का समाज, प्रेम के केंद्र पर निर्मित नहीं है। इसीलिए विक्षिप्‍तता है। इसीलिए पागलपन है, इसीलिए युद्ध है, इसीलिए आत्‍मा हत्याएँ है। इसीलिए अपराध है। प्रेम के जगत ने एक झूठा स्थानापन्न सब्‍स्‍टीट्यूट विवाह का ईजाद कर लिया है। विवाह के कारण वेश्‍याएं हे, गुंडे है। विवाह के शराबी है। विवाह के कारण बेहोशियां है। विवाह के कारण भागे हुए संन्‍यासी है, विवाह के कारण मंदिरों मे भजन करने वाले झूठे लोग है। जब तक विवाह है तब तक यह रहेगा।
      मैं यह नहीं कह रहा हूं कि विवाह मिट जाये, मैं यह कहा रहा हूं कि विवाह प्रेम से निकले। विवाह से प्रेम नहीं निकलता है। प्रेम से विवाह निकले तो शुभ है, और विवाह से प्रेम को निकलने की कोशिश की जाये तो यह प्रेम झूठा होगा। क्‍योंकि जबर्दस्ती कभी भी कोई प्रेम नहीं निकल सकता है। प्रेम या तो निकलता है या नहीं निकलता है। जबर्दस्‍ती नहीं निकाला जा सकता है।
      तीसरी बात मैंने यह कहीं है कि जो मां-बाप प्रेम से भरे हुए नहीं है; उनके बच्‍चे जन्‍म से ही विकृत, परवटेंड ,एबनार्मल, रूग्‍ण और बीमार पैदा होंगे। मैंने यह कहा जो मां-बाप जो पति-पत्‍नी, जो प्रेमी युगल प्रेम के संभोग में लीन नहीं होते है। वे केवल उन बच्‍चों को पैदा करेंगे जो शरीवादी होंगे। भौतिकवादी होगें। उनकी जीवन की आँख पदार्थ से ऊपर कभी नहीं उठेगी। वे परमात्‍मा को देखने के लिए अंधे पैदा होंगे। आध्‍यात्‍मिक रूप से अंधे बच्‍चे हम पैदा कर रहे है।
      मैंने आपसे चौथी बात यह कहीं कि मां-बाप अगर एक दूसरे को प्रेम करते है तो वे बच्‍चों के मां-बाप बनेंगे;क्‍योंकि बच्‍चे उनकी ही प्रतिध्वनि हे। वह आया हुआ नया बसंत है। वे फिर से जीवन के दरख़्त पर लगी हुई कोंपलें है। लेकिन जिसने पुराने बसंत को प्रेम नहीं किया, वह नये बसंत को प्रेम कैसे करेगा?
      और मैने अंतिम बात यह कहीं कि प्रेम शुरूआत है और परमात्‍मा अंतिम विकाश है। प्रेम में जीवन शुरू हो तो परमात्‍मा में पूर्ण होता है। प्रेम बीज बने तो परमात्‍मा अंतिम वृक्ष की छाया बनता है। प्रेम गंगोत्री हो तो परमात्‍मा का सागर उपलब्‍ध होता है।
       जिसके मन की कामना हो कि परमात्‍मा तक जाये, वह अपने जीवन को प्रेम के गीत से भर ले। और जिसकी भी आकांशा हो कि पूरी मनुष्‍यता परमात्‍मा के जीवन से भर जाए। वह सारी मनुष्‍यता को प्रेम की तरफ ले जाने के मार्ग पर जितनी बाधाएं हों वह उनको तोड़े मिटाये और प्रेम को उन्‍मुक्‍त आकाश दे; ताकि एक दिन एक नये मनुष्‍य का जन्‍म हो सके।
      पुराना मनुष्‍य रूग्‍ण था। कुरूप था, अशुभ था। पुराने मनुष्‍य ने अपने आत्‍मघात का इंतजाम कर लिया था। वह आत्‍मा हत्‍या कर रहा था। सारे जगत में वह एक साथ आत्‍मघात कर लेगा। सार्वजनिक आत्‍मघात, यूनिवर्सल स्‍यूसाइड का उपाय कर लिया गया है। अगर इसे बचाना है तो प्रेम की वर्षा, प्रेम की भूमि और प्रेम के आकाश को निर्मित कर लेना जरूरी है।

 ओशो
प्रेम और विवाह
संभोग से समाधि की और
प्रवचन—8

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