Saturday, 22 June 2013

sambhog se smadhdi ki aur part 29

संभोग से समाधि की और—29

प्रेम ओर विवाह-- 
     मेरी दृष्‍टि में जब तक एक स्‍त्री और पुरूष परिपूर्ण प्रेम के आधार पर मिलते हे, उनका संभोग होता है। उनका मिलन होता है तो उस परिपूर्ण प्रेम के तल पर उनके शरीर ही नहीं मिलते है। उनकी आत्‍मा भी मिलती है। वे एक लयपूर्ण संगीत में डूब जाते है। वे दोनों विलीन हो जाते है, और शायद परमात्‍मा ही शेष रह जाता है उस क्षण। उस क्षण जिस बच्‍चो का गर्भाधान होता है। वह बच्‍चा परमात्‍मा को उपलब्‍ध हो सकता है। क्‍योंकि प्रेम के क्षण का पहला कदम उसके जीवन में उठा लिया गया है।
      लेकिन जो मां-बाप, पति और पत्‍नी आपस में द्वेष से भरे है, धृणा से भरे है, क्रोध से भरे है। कलह से भरे है, वे भी मिलते है; लेकिन उनके शरीर ही मिलते है। उनकी आत्‍मा और प्राण नहीं मिलते। उनके शरीर के ऊपरी मिलन से जो बच्‍चे पैदा होते है। वे अगर शरीर वादी मैटिरियालिस्ट पैदा होते है। बीमार और रूग्ण पैदा होते है। और उनके जीवन में अगर आत्‍मा की प्‍यास पैदा न होती हो, तो दोष उन बच्‍चों को मत देना। बहुत दिया जा चुका यह दोष। दोष देना उन मां बाप को, जिनकी छवि लेकर वह जन्‍मते है। जिनका सब अपराध और जिनकी सब बीमारियां लेकिन जन्‍मते है। और जिनका सब क्रोध और घृणा लेकर जन्‍मते है। जन्‍म के  साथ उनका पौधा विकृत हो जाता है। फिर इनको पिलाओ गीता, इनको समझाओ कुरान,इनसे कहो कि प्रार्थनाएं करो—जो झूठी हो जाती है। क्‍योंकि प्रेम का बीज ही शुरू नहीं हो सका जो प्रार्थनाएं कैसे शुरू हो सकती है।
      जब एक स्‍त्री और पुरूष परिपूर्ण प्रेम और आनंद में मिलते है। तो वह मिलन एक आध्‍यात्‍मिक कृत्‍य स्प्रिचुअल एक्‍ट हो जाता है। फिर उसका काम, सेक्‍स से कोई संबंध नहीं है। वह मिलन फिर कामुक नहीं है। वह मिलन शारीरिक नही है। वह मिलन अनूठा है। वह उतना ही महत्‍वपूर्ण है। जितनी किसी योगी की समाधि। उतना ही महत्‍वपूर्ण है वह मिलन, जब दो आत्‍माएं परिपूर्ण प्रेम से संयुक्‍त होती है। उतना ही पवित्र है वह कृत्‍य—क्‍योंकि परमात्‍मा उसी कृत्‍य से जीवन को जन्‍म देता है। और जीवन को गति देता है।
      लेकिन तथाकथित धार्मिक लोगों ने, तथाकथित झूठे समाज ने, तथाकथित झूठे परिवार ने यही समझाने की कोशिश की है कि सेक्‍स,काम, यौन, अपवित्र है, घृणित है। नितांत पागलपन की बातें है। अगर यौन घृणित और अपवित्र है। तो सारा जीवन अपवित्र हो गया। अगर सेक्‍स पाप है तो पूरा जीवन पाप हो गया। पूरा जीवन निंदित कंडम हो गया। अगर जीवन ही पूरा निंदित हो जायेगा, तो कैसे सच्‍चे लोग उपलब्‍ध होंगे। जब जीवन ही पूरा का पूरा पाप है तो सारी रात अंधेरी हो गयी है। अब इसमें प्रकाश की किरण कहीं से लानी पड़ेगी।
      मैं आपको बस एक बात कहना चाहता हूं कि एक नयी मनुष्‍यता के जन्‍म के लिए सेक्‍स की पवित्रता, सेक्‍स की धार्मिकता स्‍वीकार करना अत्‍यंत आवश्‍यक है; क्‍योंकि जीवन उससे जन्‍मता है। परमात्‍मा उसी कृत्‍य से जीवन को जन्‍माता है।
      परमात्‍मा ने जिसको जीवन की शुरूआत बनाया है। वह पाप नहीं हो सकता है, लेकिन आदमी ने उसे पाप कर दिया है।
      जो चीज प्रेम से रहित है, वह पाप हो जाती है। जों चीज प्रेम से शून्‍य हो जाती है। वह अपवित्र हो जाती है। आदमी की जिंदगी में प्रेम नहीं रहा। इसलिए केवल कामुकता, सेक्सुअलिटी रह गयी है। सिर्फ यौन रह गया है। वह यौन पाप हो गया है। वह यौन पाप नहीं है, वह हमारे प्रेम के आभाव का पाप है। और उस पाप से सारा जीवन शुरू होता है। फिर बच्‍चे पैदा होत है। फिर बच्‍चे जन्‍मते है।
      स्‍मरण रहे, जो पत्‍नी अपने पति को प्रेम करती है। उसके लिए पति परमात्‍मा हो जाता है। शास्‍त्रों के समझाने से नहीं होती है यह बात। जो पति अपनी पत्‍नी से प्रेम करता है। उसके लिए पत्‍नी भी परमात्‍मा हो जाती है, क्‍योंकि प्रेम किसी को भी परमात्‍मा बना देता है। जिसकी तरफ उसकी आंखें प्रेम से उठती है, वह परमात्‍मा हो जाता है। परमात्‍मा को कोई अर्थ नहीं है।
      प्रेम की आँख सारे जगत को धीरे-धीरे परमात्मा मय देखने लगती है।
      लेकिन जो एक को ही प्रेम से भर नहीं पाता और सारे जगत को ब्रह्मा मय देखने की बातें करता है, उसकी वे बातें झूठी है। उन बातों का कोई आधार और अर्थ नहीं है।
      जिसने कभी एक को प्रेम नहीं किया। उसके जीवन में परमात्‍मा की कोई शुरूआत ही नहीं हो सकती, क्‍योंकि प्रेम के ही क्षण में पहली दफा कोई व्‍यक्‍ति परमात्‍मा हो जाता है। वह पहली झलक है प्रभु की। फिर उसी झलक को आदमी बढ़ता है, और एक दिन वही झलक पूरी हो जाती है। सारा जगत उसी रूप में स्थांतरित हो जाता है। लेकिन जिसने पानी की कभी बूंद नहीं देखी। वह कहता है पानी की बूंद से मुझे कोई मतलब नहीं है। पानी की बूंद का मैं क्‍या करूंगा। तुमने पानी की बूंद भी नहीं देखी, पानी की बूंद भी नहीं जानी, नहीं समझी, नहीं चखी। और चले हो सागर को खोजने। तो तूम पागल हो। क्‍योंकि सागर क्‍या है? पानी की अनंत बूँदों का जोड़।
      परमात्‍मा क्‍या है? प्रेम की अनंत बूँदों का जोड़ हे। तो प्रेम की अगर एक बूंद निंदित है तो पूरा परमात्‍मा निंदित हो गया। फिर हमारे झूठे परमात्‍मा खड़े होंगे, मूर्तियां खड़ी होंगी। पूजा पाठ होंगे,सब बकवास होगी। लेकिन हमारे प्राणों का कोई अंतर संबंध उससे नहीं हो सकता। और यह भी ध्‍यान में रख लेना जरूरी है कि कोई स्‍त्री अपने पति को प्रेम करती है, जीवन साथी को प्रेम करती है, तभी प्रेम के कारण पूर्ण प्रेम के कारण ही वह ठीक अर्थों में मां बन पाती है। बच्‍चे पैदा कर लेने मात्र से कोई मां नहीं बन जाती। मां ता कोई स्‍त्री तभी बनती है और पिता कोई पुरूष तभी बनता है जब कि उन्‍होंने एक दूसरे को प्रेम किया हो।
      जब पत्‍नी अपने पति को प्रेम करती है, अपने जीवन साथी को प्रेम करती है तो बच्‍चे उसे अपने पति का पुनर्जन्‍म मालूम पड़ते है। वह फिर वही शक्‍ल है,फिर वही रूप है। फिर वहीं निर्दोष आंखे है। जो उसके पति में छिपी थी। फिर प्रकट हुई है। उसने अगर अपने पति को प्रेम किया है। तो वह बच्‍चे को प्रेम कर सकती है। बच्‍चे को किया गया प्रेम, पति को किया गया प्रेम की प्रतिध्‍वनि है। यह पति ही फिर वापस लौट आया है। बच्‍चे का रूप लेकर। बच्‍चे को किया गया प्रेम, पति फिर पवित्र और नया हो कर वापस लोट आया है।
      लेकिन अगर पति के प्रति प्रेम नहीं है तो बच्‍चे के प्रति कैसे हो सकता है।
      बाप भी तभी कोई बनता है जब वह अपनी पत्‍नी को इतना प्रेम करता है। कि पत्‍नी भी उसे परमात्‍मा दिखाई देती है। तब बच्‍चा फिर से पत्‍नी का ही लोटा हुआ रूप है। पत्‍नी को जब उसने पहली बार देखा था। तब वह जैसी निर्दोष थी, तब वह जैसी शांत थी। तब जैसी सुंदर थी, तब उसकी आंखे जैसी झील की तरह थी। इस बच्‍चे में वापस लोट आई है। इन बच्‍चों में फिर वही चेहरा वापस लौट आया है। ये बच्‍चे फिर उसी छवि में नये होकर आ गये है—जैसे पिछले बसंत में फूल खिले थे। पिछले बसंत में पत्‍ते आये थे। फिर साल बीत गया। पुराने पत्‍ते गिर गये है। फिर नयी कोंपलें निकल आयी है। फिर नये पत्‍तों से वृक्ष भर गया है। फिर लौट आया है बसंत। फिर सब नया हो गया है। लेकिन जिसने पिछले बसंत को ही प्रेम नहीं किया था। वह इस बसंत को कैसे प्रेम कर सकेगा।
      जीवन निरंतर लोट रहा है। निरंतर जीवन का पुनर्जन्‍म चल रहा है। रोज नया होता चला जाता है। पुराने पत्‍ते गिर जाते है। नये आ जाते है। जिसने पिछले बसंत को प्रेम नहीं किया इस बसंत को कैसे कर सकता है।
      जीवन निरंतर लौट रहा है। निरंतर जीवन का पुनर्जन्‍म चल रहा है। रोज नया होता है, पुराने पत्‍ते गिर जाते है। नये आ जाते है। जीवन की यह सृजनात्‍मकता, क्रिएटिव टी ही तो परमात्‍मा है। यही तो प्रभु है। जो इसको पहचानेगा। वही तो उसे पहचानेगा।
      लेकिन न मां बच्‍चे को प्रेम कर पाती है। न पिता बच्‍चे को प्रेम कर पाता है। और जब मां और बाप को प्रेम नहीं कर पाते है। तो बच्‍चे जन्‍म से ही पागल होने के रास्‍ते पर संलग्‍न हो जाते है। उनको दूध मिलता है, कपड़े मिलते है, मकान मिलता है। लेकिन प्रेम नहीं मिलता है। प्रेम के बिना उनको परमात्‍मा नहीं मिल सकता है। और सब मिल सकता है।
      अभी रूस का एक वैज्ञानिक बंदरों के ऊपर कुछ प्रयोग करता था। उसने कुछ नकली बंदरियाँ बनायी। नकली बिजली के यंत्र, हाथ और पैर उनके बिजली के तारों का ढांचा। जो बंदर पैदा हुए, उनको नकली माताओं के पास धर दिया गया। नकली माताओं से वे चिपक गये। वे पहले दिन के बच्‍चे थे। उनको कुछ पता  नहीं कि कौन असली है,कौन नकली। वे नकली मां के पास ले जाये गये। पैदा होते ही उनकी छाती से चिपक गये। नकली दूध है वह उनके मुंह में जा रहा हे।  वे पी रहे है, वह चिपके रहते है। वह बंदरिया नकली है। वह हिलती रहती है, बच्‍चे समझते है मां हिल-हिल कर झूला रही हे। ऐसे बीस बंदर के बच्‍चों को नकली मां के पास पाला गया और उनको अच्‍छा दूध दिया गया। मां ने उनको अच्‍छी तरह हिलाया-डुलाया। मां कूदती -फाँदती सब करती। वे बच्‍चे स्‍वस्‍थ दिखाई पड़ते थे। फिर वे बड़े भी हो गये। लेकिन वे सब बंदर पागल निकले। वे सब असामान्‍य,एबनार्मल साबित हुए। उनको....उनका शरीर अच्‍छा हो गया; लेकिन उनका व्‍यवहार विक्षिप्‍त हो गया।
      वैज्ञानिक...दूध मिला....बड़े हैरान हुए कि इनको क्‍या हुआ। इनको सब तो मिला, फिर वे विक्षिप्‍त कैसे हो गये?
      एक चीज जो वैज्ञानिक की लेबोरेटरी में नहीं पकड़ी जा सकीं थी। वह उनको नहीं मिली—प्रेम उनको नहीं मिला,जो उन 20 बंदरों की हालत हुई, वहीं साढ़े तीन अरब मनुष्‍यों की हो रही है। झूठी मां मिलती है, झूठा बाप मिलता है। नकली मां हिलती है, नकली बाप हिलता है। और ये बच्‍चे विक्षिप्‍त हो जाते है। और हम कहते है कि ये शांत नहीं होते। अशांत होते चले जाते है। ये छुरे बाजी करते है। ये लड़कियों पर एसिड फेंकते है। ये कालेज में आग लगाते है। ये बस पर पत्‍थर फेंकते है, ये मास्‍टर को मारते है। मारेंगे,मारे बिना इनको कोई रास्‍ता नहीं। अभी थोड़ा–थोड़ा मारते है। कल और ज्‍यादा मारेंगे। 
      तुम्‍हारे कोई शिक्षक, तुम्‍हारे कोई नेता, तुम्‍हारे कोई धर्मगुरू इनको नहीं समझा सकेंगे। क्‍योंकि सवाल समझाने का नहीं है। आत्‍मा ही रूग्‍ण पैदा हुई हे। यह रूग्‍ण आत्‍मा प्‍यास पैदा करेगी। यह चीजों को तोड़गी, मिटाये गी। तीन हजार साल से जो चलती थी बात, वह चरम परिणति क्‍लाइमैक्‍स पर पहुंच रही है। सौ डिग्री तक हम पानी को गरम करते है। पानी भाप बनकर उड़ जाता है। निन्यानवे डिग्री तक पानी बना रहता है। फिर सौ डिग्री पर भाप बनने लगता है।
      सौ डिग्री पर पहुंच गया है आदमियत का पागलपन। अब वह भाप बनकर उड़ना शुरू हो रहा है। मत चिल्‍लाइए, मत परेशान होइए। बनने दीजिए भाप। आप उपदेश देते रहिये। अपने साधु संतों से कहिए समझाते रहा करे। अच्‍छी-अच्‍छी बातें और गीता की टीकाएं करते रहें। करते रहो प्रवचन-टीका गीता पर, और दोहराते रहो पुराने शब्‍दों को। ये भाप बननी बंद नहीं होगी। ये भाप बननी तब बंद  होगी। जब जीवन की पूरी प्रक्रिया को हम समझेंगे कि कहीं कोई भूल हो रही है। कहीं कोई भूल हुई है।
      और वह कोई आज की भूल नहीं है। चार पाँच हजार साल की भूल है। जो शिखर क्लाइमैक्स पर पहुंच गयी है। इसलिए मुश्‍किल खड़ी हुई है। ये प्रेम रिक्‍त बच्‍चे जन्‍मते है और प्रेम से रिक्‍त हवा में पाले जाते है। फिर यही नाटक ये दोहरायेंगे। मम्‍मी और डैडी का पुराना खेल। ये फिर बड़े हो जायेंगे। फिर वे यह नाटक दोहरायेंगे, फिर विवाह में बांधे जायेंगे; क्‍योंकि समाज प्रेम को आज्ञा नहीं देता। न मां पसंद करती है कि मेरी लड़की किसी को प्रेम करे। न बाप पसंद करते है कि मेरा बेटा किसी को प्रेम करे। न समाज पसंद करता है कि कोई किसी को प्रेम करे। वह कहता है प्रेम तो होना ही नहीं चाहिए। प्रेम तो पाप है। वह तो बिलकुल ही योग्‍य बात नहीं है। विवाह होना चाहिए। फिर प्रेम नहीं होगा। वही पहिया पूरा का पूरा घूमता है।
      आप कहेंगे कि जहां प्रेम होता है। वहां भी कोई बहुत अच्‍छी हालत मालूम नहीं पड़ती। नहीं मालूम पड़ती। नहीं मालूम होगी, क्‍योंकि प्रेम को आप जिस भांति मौका देते है, उसमें प्रेम एक चोरी की तरह होता है, प्रेम एक सीक्रेसी की तरह प्रेम करने वाले डरते है। घबराये हुए प्रेम करते है। चोरों की तरह प्रेम करते है। अपराधी विद्रोह में वे प्रेम करते है। यह प्रेम भी स्‍वास्‍थ नहीं है। प्रेम के लिए स्‍वस्‍थ हवा नहीं है, इसके परिणाम भी अच्‍छे नहीं हो सकते।
      प्रेम के लिए समाज को हवा पैदा करनी चाहिए। मौका पैदा करना चाहिए। अवसर पैदा करना चाहिए।
      प्रेम की शिक्षा दी जानी चाहिए, दीक्षा दी जानी चाहिए।
      प्रेम की तरफ बच्‍चों को विकसित किया जाना चाहिए। क्‍योंकि वही उनके जीवन का आधार बनेगा। वहीं उनके पूरे जीवन का केंद्र बनेगा। उसी केंद्र से उनका जीवन विकसित होगा।
      लेकिन अभी प्रेम की कोई बात नहीं है। उससे हम दूर खड़े रहते है, आंखे बंद किये खड़े रहते है। न मां बच्‍चे से प्रेम की बात करती है। और न बाप। न उन्‍हें कोई सिखाता है कि प्रेम जीवन का आधार है। न उन्‍हें कोई निर्भय बनाता है कि तुम प्रेम के जगत में निर्भय होना। न कोई उनसे कहता है कि जब तक तुम्‍हारा किसी से प्रेम न हो तब तक तुम विवाह मत करना, क्‍योंकि वह विवाह गलत होगा, झूठा होगा, पाप होगा। वह सारी कुरूपता की जड़ होगा और सारी मनुष्‍यता को पागल करने का कारण होगा।

 ओशो
प्रेम और विवाह
संभोग से समाधि की और
प्रवचन—8

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