संभोग से समाधि की और—26
युवक और यौन—
जिस दिन दुनिया में सेक्स स्वीकृत होगा, जैसा कि भोजन, स्नान स्वीकृत है। उस दिन दुनिया में अश्लील पोस्टर नहीं लगेंगे। अश्लील किताबें नहीं छपेगी। अश्लील मंदिर नहीं बनेंगे। क्योंकि जैसे-जैसे वह स्वीकृति होता जाएगा। अश्लील पोस्टरों को बनाने की कोई जरूरत नहीं रहेगी।
अगर किसी समाज में भोजन वर्जित कर दिया जाये, की भोजन छिपकर खाना। कोई देख न ले। अगर किसी समाज में यह हो कि भोजन करना पाप है, तो भोजन के पोस्टर सड़कों पर लगने लगेंगे फौरन। क्योंकि आदमी तब पोस्टरों से भी तृप्ति पाने की कोशिश करेगा। पोस्टर से तृप्ति तभी पायी जाती है। जब जिंदगी तृप्ति देना बंद कर देती है। और जिंदगी में तृप्ति पाने का द्वार बंद हो जाता है।
वह जो इतनी अश्लीलता और कामुकता और सेक्सुअलिटी है, वह सारी की सारी वर्जना का अंतिम परिणाम है।
मैं युवकों से कहना चाहूंगा कि तुम जिस दुनिया को बनाने में संलग्न हो, उसमें सेक्स को वर्जित मत करना। अन्यथा आदमी और भी कामुक से कामुक होता चला जाएगा। मेरी यह बात देखने में बड़ी उलटी लगेगी। अख़बार वाले और नेतागण चिल्ला-चिल्ला कर घोषणा करते है कि मैं लोगों में काम का प्रचार कर रहा हूं। सच्चाई उलटी है के मैं लोगों को काम से मुक्त करना चाहता हूं। और प्रचार वे कर रहे है। लेकिन उनका प्रचार दिखाई नहीं पड़ता। क्योंकि हजारों साल की परंपरा से उनकी बातें सुन-सुन कर हम अंधे और बहरे हो गये है। हमें ख्याल ही रहा कि वे क्या कह रहे है। मन के सूत्रों का, मन के विज्ञान का कोई बोध ही नहीं रहा। कि वे क्या कर रहे है। वे क्या करवा रहे है। इसलिए आज जितना कामुक आदमी भारत में है। उतना कामुक आदमी पृथ्वी के किसी कोने में नहीं है।
मेरे एक डाक्टर मित्र इंग्लैण्ड के एक मेडिकल कांफ्रेंस में भाग लेने गये थे। व्हाइट पार्क में उनकी सभा होती थी। कोई पाँच सौ डाक्टर इकट्ठे थे। बातचीत चलती थी। खाना पीना चलता था। लेकिन पास की बेंच पर एक युवक और युवती गले में हाथ डाले अत्यंत प्रेम में लीन आंखे बंद किये बैठे थे। उन मित्र के प्राणों में बेचैनी होने लगी। भारतीय प्राण में चारों तरफ झांकने का मन होता है। अब खाने में उनका मन न रहा। अब चर्चा में उनका रस न रहा। वे बार-बार लौटकर उस बेंच कीओर देखने लगे। पुलिस क्या कर रही है। वह बंद क्यों नहीं करती ये सब। ये कैसा अश्लील देश है। यह लड़के और लड़की आँख बंद किये हुए चुपचाप पाँच सौ लोगों की भीड़ के पास ही बेंच पर बैठे हुए प्रेम प्रकट कर रहे है। कैसे लोग है यह क्या हो रहा है। यह बर्दाश्त के बाहर है। पुलिस क्या कर रही है। बार-बार वहां देखते।
पड़ोस के एक आस्ट्रेलियन डाक्टर ने उनको हाथ के इशारा किया ओर कहा, बार-बार मत देखिए, नहीं तो पुलिसवाला आपको यहां से उठा कर ले जायेगा। वह अनैतिकता का सबूत है। यह दो व्यक्तियों की निजी जिंदगी की बात है। और वे दोनों व्यक्ति इसलिए पाँच सौ लोगों की भीड़ के पास भी शांति से बैठे है, क्योंकि वे जानते है कि यहां सज्जन लोग इकट्ठे है, कोई देखेगा नहीं। किसी को प्रयोजन भी क्या है। आपका यह देखना बहुत गर्हित है, बहुत अशोभन है, बहुत अशिष्ट है। यह अच्छे आदमी का सबूत नहीं है। आप पाँच सौ लोगों को देख रहे है कोई भी फिक्र नहीं कर रहा। क्या प्रयोजन है किसी से। यह उनकी अपनी बात है। और दो व्यक्ति इस उम्र में प्रेम करें तो पाप क्या है? और प्रेम में वह आँख बंद करके पास-पास बैठे हों तो हर्ज क्या है? आप परेशान हो रहे है। न तो कोई आपके गले में हाथ डाले हुए है, न कोई आपसे प्रेम कर रहा है।
वह मित्र मुझसे लौटकर कहने लगे कि मैं इतना घबरा गया किये कैसे लोग है। लेकिन धीरे-धीरे उनकी समझ में यह बात पड़ी की गलत वे ही थे।
हमारा पूरा मुल्क ही एक दूसरे घर में दरवाजे के होल बना कर झाँकता रहता है। कहां क्या हो रहा है। कौन क्या कर रहा है? कौन जा रहा है? कौन किसके साथ है? कौन किसके गले में हाथ डाले है? कौन किसका हाथ-हाथ् में लिए है? क्या बदतमीजी है, कैसी संस्कारहीनता है। यह सब क्या है? यह क्यों हो रहा है? यह हो रह है इसलिए कि भीतर वह जिसको दबाता है, वह सब तरफ से दिखाई पड़ रहा है। वही दिखाई पड़ रहा है।
युवकों से मैं कहना चाहता हूं कि तुम्हारे मां बाप, तुम्हारे पुरखे,तुम्हारी हजारों साल की पीढ़ियाँ सेक्स से भयभीत रही है। तुम भयभीत मत रहना। तुम समझने की कोशिश करना उसे। तुम पहचानने की कोशिश करना। तुम बात करना। तुम सेक्स के संबंध में आधुनिक जो नई खोज हुई है उनको पढ़ना, चर्चा करना और समझने की कोशिश करना कि सेक्स क्या है। क्या है सेक्स का मैकेनिज्म? उसका यंत्र क्या है? उसका यंत्र क्या है? क्या है उसकी आकांक्षा? क्या है उसकी प्यास? क्या है प्राणों के भीतर छिपा हुआ राज? इसको समझना। इसकी सारी की सारी वैज्ञानिकता को पहचाना। उससे भागना, ‘एस्केप’ मत करना। आँख बंद मत करना। और तुम हैरान हो जाओगे कि तुम जितना समझोगे, उतने ही मुक्त हो जाओगे। तुम जितना समझोगे, उतने ही स्वस्थ हो जाओगे। तुम जितना सेक्स के फैक्ट को समझ लोगे, उतना ही सेक्स के ‘फिक्शन’ से तुम्हारा छुटकारा हो जायेगा।
तथ्य को समझते ही आदमी कहानियों से मुक्त हो जाता है। और जो तथ्य से बचता है, वह कहानियों में भटक जाता है।
कितनी सेक्स की कहानियां चलती हे। और कोई मजाक ही नहीं है हमारे पास, बस एक ही मजाक है कि सेक्स की तरफ इशारा करें और हंसे। हद हो गई। तो जो आदमी सेक्स की तरफ इशारा करके हंसता है, वह आदमी बहुत ही क्षुद्र है। सेक्स की तरफ इशारा करके हंसने का क्या मतलब है? उसका एक ही मतलब है कि आप समझते ही नहीं।
बच्चे तो बहुत तकलीफ में है कि उन्हें कौन समझायें,किससे वे बातें करें कौन सारे तथ्यों को सामने रखे। उनके प्राणों में जिज्ञासा है, खोज है, लेकिन उसको दबाये चले जाते हे। रोके चले जाते है। उसके दुष्परिणाम होते है। जितना रोकते है, उतना मन वहां दौड़ने लगता है और उस रोकने और दौड़ने में सारी शक्ति और ऊर्जा नष्ट हो जाती है।
यह मैं आपसे कहना चाहता हूं कि जिस देश में भी सेक्स की स्वस्थ रूपा से स्वीकृति नहीं होती, उस देश की प्रतिभा का जन्म नहीं होता।
पश्चिम में तीन वर्षो में जो जीनियस पैदा हुआ है, जो प्रतिभा पैदा हुई है। वह सेक्स के तथ्य की स्वीकृति से पैदा हुई है।
जैसे ही सेक्स स्वीकृत हो जाता है। वैसे ही जो शक्ति हमारी लड़ने में नष्ट होती है, वह शक्ति मुक्त हो जाती है। वह रिलीज हो जाती है। और उस दिन शक्ति को फिर हम रूपांतरित करते है—पढ़ने में खोज में, आविष्कार में,कला में, संगीत में,साहित्य में।
और अगर वह शक्ति सेक्स में ही उलझी रह जाये जैसा कि सोच लें कि वह आदमी जो कपड़े में उलझ गया है—नसरूदीन, वह कोई विज्ञान के प्रयोग कर सकता था बेचारा। कि वह कोई सत्य का सृजन कर सकता था? कि वह कोई मूर्ति का निर्माण कर सकता था। वह कुछ भी कर सकता था। वह कपड़े ही उसके चारों और घूमते रहते है ओर वह कुछ भी नहीं कर
पाता है।
भारत के युवक के चारों तरफ सेक्स घूमता रहता है पूरे वक्त। और इस घूमने के कारण उसकी सारी शक्ति इसी में लीन और नष्ट हो जाती है। जब तक भारत के युवक की सेक्स के इस रोग से मुक्ति नहीं होती, तब तक भारत के युवक की प्रतिभा का जन्म नहीं हो सकता। प्रतिभा का जन्म तो उसी दिन होगा, जिस दिन इस देश में सेक्स की सहज स्वीकृति हो जायेगी। हम उसे जीवन के एक तथ्य की तरह अंगीकार कर लेंगे—प्रेम से, आनंद से—निंदा से नहीं। और निंदा और घृणा का कोई कारण भी नहीं है।
सेक्स जीवन का अद्भुत रहस्य है। वह जीवन की अद्भुत मिस्ट्रि हे। उससे कोई घबरानें की,भागने की जरूरत नहीं है। जिस दिन हम इसे स्वीकार कर लेंगे, उस दिन इतनी बड़ी उर्जा मुक्त होगी भारत में कि हम न्यूटन पैदा कर सकेंगे,हम आइंस्टीन पैदा कर सकेंगे। उस दिन हम चाँद-तारों की यात्रा करेंगे। लेकिन अभी नहीं। अभी तो हमारे लड़कों को लड़कियों के स्कर्ट के आस पास परिभ्रमण करने से ही फुरसत नहीं है। चाँद तारों का परिभ्रमण कौन करेगा। लड़कियां चौबीस घंटे अपने कपड़ों को चुस्त करने की कोशिश करें या कि चाँद तारों का विचार करें। यह नहीं हो सकता। यह सब सेक्सुअलिटी का रूप है।
हम शरीर को नंगा देखना और दिखाना चाहते है। इसलिए कपड़े चुस्त होते चले जाते है।
सौंदर्य की बात नहीं है यह, क्योंकि कई बार चुस्त कपड़े शरीर को बहुत बेहूदा और भोंडा बना देते है। हां किसी शरीर पर चुस्त कपड़े सुंदर भी हो सकते है। किसी शरीर पर ढीले कपड़े सुंदर हो सकते है। और ढीले कपड़े की शान ही और है। ढीले कपड़ों की गरिमा और है। ढीले कपड़ों की पवित्रता और है।
लेकिन वह हमारे ख्याल में नहीं आयेगा। हम समझेंगे यह फैशन है, यह कला है, अभिरूचि है, टेस्ट है। नहीं‘’टेस्ट’’ नहीं है। अभी रूचि नहीं है। वह जो जिसको हम छिपा रहे है भीतर दूसरे रास्तों से प्रकट होने की कोशिश कर रहा है। लड़के लड़कियों का चक्कर काट रहे है। लड़कियां लड़कों के चक्र काट रही है। तो चाँद तारों का चक्कर कौन काटेगा। कौन जायेगा वहां? और प्रोफेसर? वे बेचारे तो बीच में पहरेदार बने हुए खड़े है। ताकि लड़के लड़कियां एक दूसरे के चक्कर न काट सकें। कुछ और उनके पास काम है भी नहीं। जीवन के और सत्य की खोज में उन्हें इन बच्चों को नहीं लगाना है। बस, ये सेक्स से बचे जायें,इतना ही काम कर दें तो उन्हें लगता है कि उनका काम पूरा हो गया।
यह सब कैसा रोग है, यह कैसा डिसीज्ड माइंड, विकृत दिमाग है हमारा। हम सेक्स के तथ्यों की सीधी स्वीकृति के बिना इस रोग से मुक्त नहीं हो सकते। यह महान रोग है।
इस पूरी चर्चा में मैंने यह कहने की कोशिश की है कि मनुष्य को क्षुद्रता से उपर उठना है। जीवन के सारे साधारण तथ्यों से जीवन के बहुत ऊंचे तथ्यों की खोज करनी है। सेक्स सब कुछ नहीं है। परमात्मा भी है दुनिया में। लेकिन उसकी खोज कौन करेगा। सेक्स सब कुछ नहीं है इस दुनिया में सत्य भी है। उसकी खोज कौन करेगा। यहीं जमीन से अटके अगर हम रह जायेंगे तो आकाश की खोज कौन करेगा। पृथ्वी के कंकड़ पत्थरों को हम खोजते रहेंगे तो चाँद तारों की तरफ आंखे उठायेगा कौन?
पता भी नहीं होगा उनको जिन्होंने पृथ्वी की ही तरफ आँख लगाकर जिंदगी गुजार दी। उन्हें पता नहीं चलेगा कि आकाश में तारे भी हैं, आकाश गंगा भी है। रात्रि के सन्नाटे में मौन सन्नाटा भी है आकाश का। बेचारे कंकड़ पत्थर बीनने वाले लोग, उन्हें पात भी कैसे चलेगा कि और आकाश भी है। और अगर कभी कोई कहेगा कि आकाश भी है, चमकते हुए तारे भी है। तो वे कहेंगे सब झूठी बातचीत है, कोरी कल्पना है। सच में तो केवल पत्थर ही पत्थर है। हां कहीं रंगीन पत्थर भी होते है। बस इतनी ही जिंदगी है।
नहीं, मैं कहता हूं इस पृथ्वी से मुक्त होना है,ताकि आकाश दिखाई पड़ सके। शरीर से मुक्त होना है। ताकि आत्मा दिखाई पड़ सके। और सेक्स से मुक्त होना है, ताकि समाधि तक मनुष्य पहुंच सके। लेकिन उस तक हम नहीं पहुंच सकेंगे। अगर हम सेक्स से बंधे रह जाते है तो। और सेक्स से हम बंध गये है। क्योंकि हम सेक्स से लड़ रहे है।
लड़ाई बाँध देती है। समझ मुक्त कर देती है। अंडरस्टैंडिंग चाहिए समझ चाहिए।
सेक्स के पूरे रहस्य को समझो बात करो विचार करो। मुल्क में हवा पैदा करो कि हम इसे छिपायेंगा नहीं। समझेंगे। अपने पिता से बात करो,अपनी मां से बात करो। वैसे वे बहुत घबराये गे। अपने प्रोफेसर से बात करो। अपने कुलपति को पकड़ो और कहो कि हमें समझाओ। जिंदगी के सवाल है ये। वे भागेगे। वे डरे हुए लोग है। डरी हुई पीढ़ी से आयें है। उनको पता भी नहीं है। जिंदगी बदल गयी है। अब डर से काम नहीं चलेगा। जिंदगी का एन काउंटर चाहिए मुकाबला चाहिए। जिंदगी से लड़ने और समझने की तैयारी करो। मित्रों का सहयोग लो, शिक्षकों का सहयोग लो, मां-बाप का सहयोग लो।
वह मां गलत है, जो अपनी बेटी को और अपने बेटे को वे सारे राज नहीं बात जाती,जो उसने जाने। क्योंकि उसके बताने से बेटा और उसकी बेटी भूलों से बच सकती है। उसके न बताने उनसे भी उन्हीं भूलों को दोहराने की संभावना है। जो उसने खुद की होगी। बाप गलत है, जो अपने बेटे को अपनी प्रेम की और अपनी सेक्स की जिंदगी की सारी बातें नहीं बता देता। क्योंकि बता देने से बेटा उन भूलों से बच जायेगा। शायद बैटा ज्यादा स्वस्थ हो सकेगा। लेकिन वही बात इस तरह जीयेगा कि बेटे को पता चले कि उसने प्रेम ही नहीं किया। वह इस तरह खड़ा रहेगा। आंखे पत्थर की बनाकर कि उसकी जिंदगी में कभी कोई औरत इसे अच्छी लगी ही नहीं थी।
यह सब झूठ है। यह सरासर झूठ है। तुम्हारे बाप न भी प्रेम किया है। उनके बाप ने भी प्रेम किया है। सब बाप प्रेम करते रहे है। लेकिन सब बाप धोखा देते रहे है। तुम भी प्रेम करोगे। और बाप बनकर धोखा दोगे। यह धोखे की दुनिया अच्छी नहीं है। दुनिया साफ सीधी होनी चाहिए। जो बाप ने अनुभव किया है वह बेटे को दे जाये। जो मां ने अनुभव किया, वह बेटी को दे जाये। जो ईष्र्या उसने अनुभव कि है। जो प्रेम के अनुभव किये है। जो गलतियां उसने की है। जिन गलत रास्तों पर वह भटकी है और भ्रमि है। उस सबकी कथा को अपनी बेटी को दे जाये। जो नहीं दे जाते है, वे बच्चे का हित नहीं करते है। अगर हम ऐसा कर सके तो दुनिया ज्यादा साफ होगी।
हम दूसरी चीजों के संबंध में साफ हो गये है। शायद केमेस्ट्री के संबंध में कोई बात जाननी हो तो सब साफ है। फ़िज़िक्स के संबंध में कोई बात जाननी है तो सब साफ है। भूगोल के बाबत जाननी हो तो सब साफ है। नक्शे बने हुए है। लेकिन आदमी के बाबत साफ नहीं है। कहीं कोई नक्शा नहीं है। आदमी के बाबत सब झूठ है। दुनिया सब तरफ से विकसित हो रही है। सिर्फ आदमी विकसित नहीं हो रहा। आदमी के संबंध में भी जिस दिन चीजें साफ-साफ देखने की हिम्मत हम जुटा लेंगे। उस दिन आदमी का विकास निश्चित है।
यह थोड़ी बातें मैंने कहीं। मेरी बातों को सोचना। मान लेने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि हो सकता है कि जो मैं कहूं बिलकुल गलत हो। सोचना, समझना, कोशिश करना। हो सकता है कोई सत्य तुम्हें दिखाई पड़े। जो सत्य तुम्हें दिखाई पड़ जायेंगा। वही तुम्हारे जीवन में प्रकार का दिया बन जायेगा।
ओशो
युवक और यौन,
बड़ौदा,विश्वविद्यालय, बड़ौदा।
No comments:
Post a Comment